आज जब हम आज़ादी के छठवें दशक में प्रवेश कर चुके हैं और शिक्षा को मानव की मूलभूत आवश्यक्ता एवं अधिकार बनाने की बात कर रहे हैं तब हमारे लिये यह बात आवश्यक हो जाती है कि हम यह भी निर्धारित करें कि क्या वह शिक्षा महज़ साक्षरता के आंकडों की वृद्धि के लिये हो या वास्तव मेँ हमारे देश के नागरिकोँ के बौद्धिक एवं सामाजिक स्तर को बढाने के लिये। यूँ तो सरकार ने सन 2020 तक देश की साक्षरता की दर शत-प्रतिशत तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा हैऔर वह उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये तरह-तरह के अभियान भी चला रही है। परँतु विचारणीय पहलू यहाँ है कि सरकार अपनी इन योजनाओँ एवं अभियानोँ की सफलता का कितना भी ढोल पीटे और उसको सत्यापित करने के लिये कागज़ोँ पर कितने ही आँकडे प्रस्तुत करे परँतु सतही सच्चाई उन आँकडो और अतिरँजित एवँ आत्मश्लाघी कथ्योँ से बहुत परे है। अभी कुछ समय पहले डी.आई.एस.ई. ने मध्य प्रदेश के स्कूलोँ की स्तिथि के ऊपर अपनी वर्ष 2006-07 की रिपोर्ट ज़ारी की। इस रिपोर्ट से जो तथ्य सामने आते हैँ वे न केवल चिंताजनक एवं चौंका देने वाले हैं बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि हम अपनी आने वाली पीढी को साक्षर तो बना रहे हैं परंतु शिक्षित नहीं बना पा रहे हैं। यदि डी.आई.एस.ई. की रिपोर्ट द्वारा उदघटित आंकडो को देखा जाये तोयह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मध्यप्रदेश ने गुणवत्ताहीन शिक्षा के क्षेत्र में एक कीर्तीमान स्थापित किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में कुल मिलाकर १२०६६१ विद्यालय हैं जिनमें से २५% यानि ३०२३३ विद्यालयोंमें मत्र एक ही शिक्षक पदस्थ है।
मध्यप्रदेश में प्राथमिक शालाओं का स्तर:- मध्यप्रदेश में प्रथ्मिक शालाओं के परिप्रेक्ष्य में प्रप्त आंकडों के अनुसार राज्य में ७७९८२ शासकीय एवं ६०६३ प्राथमिक शालायें हैं। इनमें से २६८८४ शालाएं एक शिक्षकीय प्रणाली द्वारा संचालित हैं। यानि प्रदेश भर की ३२% शालाओं में मात्र एक ही शिक्षक विद्यमान है। प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों बङ्वानी, डिंडोरी, सीधी, झाबुआ, खरगौन एवं मंडला में क्रमशः ६४.५%, ५४%, ५०.३%, ४८.६%, ४६.५% एवं ४२.७% शालायें एक शिक्षकीय हैं। इन आंकडों के साथ ही बेहद चौंका देने वाले आंकङे आते हैं वर्तमान मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के गृह जिले रीवा से। रीवा जिले में प्रदेश की सर्वाधिक ४०२५ प्राथमिक शालाएं हैं जिनमें से ३७.१% अर्थात १४९३ शालाएं एक शिक्षकीय प्रणाली द्वारा संचालित हैं। ऐसा नहीं है कि यह हाल मात्र आदिवासी बाहुल्य इलाकों का ही है बल्कि राज्य के सभी ४८ जिलों में एक शिक्षकीय शालायें विद्यमान हैं। प्रदेश में सबसे कम एक शिक्षकीय प्राथमिक शालाओं का प्रतिशत शाजापुर, उज्जैन, मंदसौर, इंदौर और दतिया में रिकॉर्ड किया गया जहां क्रमशः १३.७%, १४.९%, १५.२%, १६.८% और१७.५% प्राथमिक शालाओं में केवल एक ही शिक्षक है।
मध्यप्रदेश में माध्यमिक शालाओं की स्तिथि:- एक शिक्षकीय प्रणाली से संबंधित आंकङे केवल प्राथमिक शालाओं तक ही सीमित नहीं हैं। इस प्रणाली ने माध्यमिक शालाओं को भी अपने पाश में जकङ रखा है। प्रदेश के यदि चार जिले बुरहानपुर, सिहोरा, सीधी, एवं भोपाल को छोङ दिया जाये तो शेष सभी ४४ जिलों में एक शिक्षकीय सालायें मौज़ूद हैं। यहां भी जिन जिलों में सर्वाधिक एक शिक्षकीय माध्यमिक शालायें विद्यमान हैं वे सभी मंडला, श्योपुर, टीकमगढ़, हरदा जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले ही हैं जहां क्रमशः २५.७%, २३.४%, २०.९% एवं २०.५% शालाएं एकल शिक्षकीय प्रणाली द्वारा संचालित हैं।पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह क गृह जिला भी इस सूची में ज़्यादा पीछे नहीं है। यहां २१.३% माध्यमिक शालाएं ऐसी हैं जहां केवल एक ही शिक्षक है। आपराधिक गतिविधियों के लिये विख्यात भिंड जिले में प्रदेश की सर्वाधिक ७४९ शालाएं हैं जिनमें २०% माध्यमिक शालाएं एक शिक्षकीय प्रणाली द्वारा संचालित हैं।
यदि कुलजमा आंकङों पर नज़र डाली जाये तो हम पाते हैं कि प्रदेश की ३२ प्रतिशत शालाओं मेंपांच कक्षाओं को पढाने के लिये मात्र एक ही शिक्षक है अर्थात २६८८४ विद्यालयों के छात्रों को दिन में मात्र एक घंटे के लिये ही पढाया जाता है जो कि शिक्षा के न्यूनतम पांच घंटे के मानक से कहीं कम एवं सर्वथा विरुद्ध है। यही नहीं प्रदेश के कुल उच्चतर माध्यमिक विद्यालयो में भी ४% उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ऐसे हैं जहां कक्षा बारहवीं तक के लिये केवल एक ही शिक्षक उपलब्ध है। शायद यही कारण है कि स्कूली शिक्षा के चार वर्ष पूरे करने वाले लगभग ३८% बच्चे छोटे- छोटे वाक्य भी नहीं पढ़ पाते और ५५% बच्चे तीन अंकों वाली संख्या को एक अंक वाली संख्या से विभाजित नहीं कर पाते। हालांकि इस बार ग्यारहवीं योजना में वर्ष २०१० तक प्रारंभिक शिक्षा का शत-प्रतिशत विस्तार करने का लक्ष्य रखा गया है। ज़ाहिर है इस लक्ष्य को प्राप्त भी कर लिया जायेगा। परंतु डी.आई.एस.ई. कि रिपोर्ट से उदृत आंकङे यह प्रश्न अवश्य उठाते हैं कि इस तरह की शिक्षा प्रणाली से हम साक्षर भारत तो बना लेंगे, परंतु क्या हम शिक्षित भारत बना पायेंगे?
Wednesday, September 12, 2007
मध्य प्रदेश में शिक्षा: एक पुर्नमूल्यांकन
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1 Comment:
मै मप्र की शिक्षा व्यवस्था से कुछ साल एक अध्यापक की हैसियत से जुडा रहा था, अत: लेख मेरे लिये एक दम हृदयस्पर्शी निकला.
मप्र शिक्षाजगत में बहुत परिवर्तन होने हैं -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!
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