Friday, September 14, 2007

हिन्दी दिवस पर विशेष

गुलामियत के व्यवहार पर एक बहुत प्रसिद्ध अवधारणा है जिसे हम स्टोकहोम सिंड्रोम कहते हैं। इसके अनुसार गुलामियत की पराकाष्ठा वह है जब गुलाम खुद कहने लग कि वह गुलाम नहीं है और वह जो भी कर रहा है वह स्वेच्छा से कर रहा है।
यहाँ इस अवधारणा का उदाहरण देना इसीलिये आवश्यक है क्यों कि हिन्दुस्तान की लगभग ६०% जनता इस सिंड्रोम से ग्रस्त है। आज भी हम अंग्रेजी किताबों को पढने, अंग्रेजी में बात करने एवं अपने दैनिक व्यवहार में अंग्रेजी का प्रयोग करने को स्तर का परिचायक यानि “स्टेटस सिंबल” मानते हैं। और साथ ही हमारी मानसिकता बन गयी है कि जो भी व्यक्ति हिन्दी का प्रयोग करता है वह उन तथाकथित स्तरीय महानुभावों के सम्मुख स्तरहीन हो जाता है। अपनी इस बात को आगे बढाने से पहले यदि हम एक दृष्टि अंर्तराष्ट्रीय परिदृष्य पर डालें तो वर्तमान समय में हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे बङी भाषा है। दुनिया के २२ देशों में लगभग ८० करोङ लोग इस भाषा का प्रयोग करते हैं। इतना ही नहीं विदेशों के १४० विश्वविद्यालयों मे हिन्दी शिक्षण व्यवस्था है। इतना विस्तृत क्षेत्र होने के बाद भी आज हिन्दी को जो स्थान प्राप्त होना चाहिये वह नहीं हुआ है।
और हिन्दी की इस दुर्दशा के पीछे यदि कोई कारण है तो वे हैं यही अंग्रेज़ी समर्थक मानसिकता वाले भारतीय। हालांकि १४ सितंबर १९४९ को राष्ट्रभाषा हिन्दी को कामकाज की भाषा घोषित किया गया था। परंतु यह घोषणा उस समय से आज तक कागज़ों पर ही सीमित है। इसका मूल कारण यह रहा कि स्वाधीनता के बाद हमारे देश के कुछ अंग्रेजी दासता से ग्रसित नौकरशाही शासकों ने हिन्दी को उपयुक्त स्थान दिलाने के मार्ग में रोङे अट्काने प्रारंभ कर दिये। कहा जाने लगा कि अंग्रेजी के बिना रष्ट्र ज्ञान-विज्ञान में पिछङ जायेगा। उस समय यदि हिन्दी को उपयुक्त स्थान दिया जाता तो शायद हमें आज हिन्दी की ऐसी दुर्दशा न देखनी पङती परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो पाया।
परंतु आज आज़ादी के छटवें दशक में यह शुभ संकेत है कि अंर्तराष्ट्रिय हिन्दी सम्मेलनों, जालपृष्ठों, चिट्ठों आदि के माध्यम से कई हिन्दी प्रेमी अपनी राष्ट्र भाषा के प्रचार-प्रसार में जी जान से जुटे हुये हैं। हिन्दी को विश्व-भाषाओं में स्थान दिलाये जाने के भी भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। जहाँ एक ओर विश्व साहित्य का हिन्दी मे अनुवाद हो रहा है वहीं हिन्दी साहित्य का अनुवाद भी अन्य विश्व भाषाओं में हो रहा है। हिन्दी भाषा एवं साहित्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति का भी प्रसार हो रहा है। और मन में यह विश्वास जग रहा है कि एक दिन अपनी मधुरता, वैज्ञानिकता, एवं सक्षमता के कारण हिन्दी सम्पूर्ण विश्व में सर्वोच्च स्थान प्रप्त करेगी।

1 Comment:

ePandit said...

स्टॉकहोम सिंड्रोम के बारे में जानना रुचिकर रहा।

 

© Vikas Parihar | vikas