Monday, September 10, 2007

सशस्त्र सैनाओं में महिलाओं की स्थिति चिन्ताजनक

आज जब हर जगह महिलाओं के सशक्तिकरण का नारा बुलंद किया जा रहा है ऐसे में देश की सशस्त्र सैनाओं में ही महिलाओं की स्थिति बडी चिन्ताजनक बनी हुई है। यदि आर्मी डेंटल कोर्पस, मेडिकल कोर्पस, और नर्सिंग स्टाफ़ को छोड दिया जाये तो सैनाओँ मे महिला अधिकारियोँ का कुल प्रतिशत २.६५ ही रह जाता है। इसमें से वायु सेना में सबसे अधिक ६.७%, जल सेना में ३% एवं थल सेना में मात्र २.४४% महिला अधिकारी हैं।
सशस्त्र सैनाओं में महिला अधिकारियों का पहला बैच १९९२ में भर्ती किया गया था। तब से अब तक ना तो इनकी भूमिका में ही कोई परिवर्तन आया है ना हि इनकी संख्या में। आज भी महिलाओं को सक्रीय सैन्य सेवाओं के लिये अनुपयुक्त माना जा रहा है। इसीलिये आज भी इनका सेवा क्षेत्र मात्र सैन्य प्रशासनिक सेवाओं, लोजिस्टिक्स, एकाउंट्स, शिक्षा, मौसम विभाग आदि तक ही सीमित है।
हालंकि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने अपने १३२५ प्रस्ताव में सभी सदस्य राष्ट्रों से अनुरोध किया था कि वे सभी प्रमुख एवं निर्णयात्मक क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढायें. ब्रिटिश सशस्त्र सैनओं में ९५% कार्य महिलाओ के लिये खुले हैं। २००६ में रोयल एयर फ़ोर्स में १२.३% महिलाएं थीं। इसके साथ ही अफ़गानिस्तान एवं ईराक़ के खिलाफ़ सैन्य कार्यवाहियों में महिला लडाकू विमान चालकों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
यदि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृष्य की बात करें तो हमारे सामने कल्पना चावला एवं सुनीता विलियम्स जैसे उदाहरण हैं जिन्होने यह साबित कर दिया है कि महिलायें किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं परंतु भारत की पुरुष प्रधान मानसिकता आज भी महिलाओं को निःशक्त, अक्षम एवं पराश्रित ही मानती है। इसीलिये आज भी महिलाओं को सशस्त्र सैनाओं के लिये उप्युक्त नहीं माना जाता। और जो भी महिलायें सशस्त्र सैनाओं में भर्ती होती हैं उन्हे अपने ही समतुल्य पुरुषों का विरोध झेलना पडता है। इस विरोध के साथ-साथ उन्हें कई प्रकार की दुर्व्यवहार एवं दुर्भावनाओं का भी सामना करना पडता है।

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© Vikas Parihar | vikas