गरीबी रेखा वह रेखा है जो गरीबोँ के ऊपर और अमीरोँ के नीचे से गुज़रती है. भले ही सैधांतिक रूप से यह परिभाषा सही ना हो परंतु व्यवहारिक रूप से गरीबी रेखा की परिभाषा इससे अलग नहीँ हो सकती. वास्तविकता मे गरीबी रेखा के माध्यम से प्रशासन ऐसे लोगों का चयन करता है जो इससे अधिक आभाव मे जी रहे हैं कि उन्हें रोज़ खाना नहीं मिलता, रोजगार का मुद्दा तो ऐसे लोगों के लिये सट्टे जैसा है, नाम मात्र को छ्प्पर मौज़ूद है या नहीं, कपडोँ के नाम पर कुछ चिथडे वे लपेते रहते हैं. ये वे लोग हैं जिन्हे विकास प्रक्रिया मे एक बहुत बडी बाधा माना जा रहा है.
हमारे देश मे इस तरह के लोगों की गिनती करने की शुरुआत 1960 से हुई उस समय ऐसे लोगों का चयन घरेलू उपभोग व्यय को आधार बना कर करना तय हुआ 60 के दशक मे ग्रामीण क्षेत्रोँ मेँ 20 रुपये और शहरी क्षेत्रो मे 25 रुपयो से कम का उपभोग करने वाले लोगों को इस सूची मे रखा जायेगा. इसके बाद 1973-74 मे ऐसे लोगों के चयन के लिये ऊर्जा को ऐसे लोगों के चयन का पैमाना बनाया गया. इस नये पैमाने के अनुसार एक साधारण ग्रामीण के लिये 2400 कैलोरी और शहरी व्यक्ति के लिये 2100 कैलोरी न्यूनतम मापक रखे गये. परंतु 1993-94 मे फिर इन मापको मे परिवर्तन किया गया और इने घटा कर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिये 1968 कैलोरी और शहरी क्षेत्र के लोगों के लिये 1890 कैलोरी कर दिया गया.
पिछ्ले दो दशको मे ग्रामीणो पर इस काम मे लगभग 45000 करोड रुपया खर्च किया जा चुका है परंतु फिर भी कुल लक्ष्य का मात्र 20 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है. 2006-07 के आर्थिक सर्वेक्षण के प्रतिवेदन के अनुसार आज भी प्रदेश की 38 प्रतिशत जनसंख्या यानी 44.77 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रहे है जिनमे से 15.81 लाख परिवार अत्यधिक गरीबी मे अपना जीवन यापन कर रहे हैं. इतना ही नही करीब 60 लाख परिवार ऐसे भी हैं जो पर्याप्त भोजन और सम्मानजनक जीवन से वंचित हैं.
हालांकी यदि इस सूची का निर्माण सही ढंग से ऐवम पूर्ण ईमानदारी से किया जाये तो यह सूची बहुत महत्वपूर्ण होती है क्यों कि इसी सूची के आधार पर ही गरीबोँ, निराश्रितो, वृद्धो, विधवाओ आदि को जन-कल्याणकारी योजनाओ का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होगा. वर्तमान मे ऐसी 12 योजनाये हैं जो केवल बी.पी.एल. सूची मे आने वाले लोगों को ध्यान मे रख कर ही संचालित की जा रही हैं जबकी 9 जन-कल्याणकारी कार्यक्रम ऐसे लोगों के हितो की रक्षा के लिये संचालित की जा रही हैं. परंतु प्रशासन द्वारा बनयी गयी बी.पी.एल. सूची की प्रमाणिकता पर भी कई सवाल उठते हैं जैसे पिछ्ले वर्ष लगभग 11.42 लाख परिवारो ने अपने दावे सरकार के समक्ष प्रस्तुत किये थे जिस पर सरकार ने स्वीकार किया था कि इनमे से 8.71 लाख परिवारो का नाम 44.77 लाख परिवारो वाली बी.पी.एल. सूची मे सम्मिलित होना चाहिये था. जिसका सीधा सा अर्थ यह निकलता है कि सरकार द्वारा बनायी गयी सूची मे 25 प्रतिशत नाम अयोग्य लोगों के थे. इसी संबन्ध मे डेमोक्रटिक एफर्ट फोर गुड गवर्नेस इन मध्य प्रदेश नामक एक गैर सरकारी संस्था के द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार कुल वंचितो मे से सिर्फ 37 प्रतिशत लोगों ने ही अपने दावे प्रस्तुत किये थे. अर्थत प्रदेश मे ऐसे लगभग 24 लाख परिवार हैं जिन्हे सर्वेक्षण कर्ताओ की लापरवाही का खामियाज़ा भुगतना पडा. इंडियन मार्केटिंग डेव्लपमेंट सेंटर के एक समारोह मे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी स्वीकार किया था कि भले ही केन्द्र सरकार यह मानती है कि प्रदेश मे गरीबो की संख्या 37 प्रतिशत है परंतु वास्तव मे प्रदेश मे लगभग 60 प्रतिशत लोग गरीब हैं.
Monday, September 10, 2007
मध्य प्रदेश मे 44 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे
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