Thursday, October 11, 2007

इंडियन आईडल

एक समय था जब आदर्शों की बात करने पर महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे महापुरुषों के नाम आते थे। माता-पिता अपने बच्चों को इन जैसे कर्म करने को प्रेरित किया करते थे। बच्चे भी बचपन से इन्हीं के बारे में सुन कर बड़े हुआ करते थे। परंतु धीरे-धीरे समय बदला, काल बदला और साथ ही बदल गए हमारे मूल्य और आदर्श। आज माता-पिता अपने बच्चों को जीवन के मूल्यों की जगह वस्तुओं के मूल्यों पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करते हैं। हमने गाँधी, सुभाष, टैगोर, आज़ाद, तिलक, पटेल, शास्त्री जैसे महापुरुषों को एक दम हाशिए पर ला कर खड़ा कर दिया है। इनका अस्तित्व आज-कल महज़ कार्यालयों में टंगी,मिट्टी की पर्त से ढंकी, तस्वीरों और चौराहों पर खड़ी धूल धुसरित प्रतिमाओं तक ही सीमित रह गया है। और आज की युवा पीढी के आदर्शों की सूची में शुमार हो गए हैं अभिजीत सावंत, अमित साना, शाहरुख खान, आमिर खान, ऋतिक रोशन और न जाने ऐसे कितने ही लोग। ये हैं आज के इंडियन आईडल(भारत के आदर्श)। जीवन के मूल्यों का अवमूल्यन करते और आदर्शों का मिथ्या प्रदर्शन करते। ये ऐसे लोग हैं जो भूखमरी मिटाने के लिए भूखों के समूह मे खड़े हो कर आवाज़ तो ज़रूर उठाते हैं परंतु जूस पी-पी कर। तन ढंकने के लिए कपड़ों की गुहार करते लोगों की आवाज़ मे अपना स्वर ज़रूर मिलाते हैं परंतु ली की जींस, कॉटन प्लस की शर्ट, और वुडलेंड के जूते पहन कर।
बढिया है! हमारे देश ने काफी तरक्की कर ली है। हमने अपने सफर की शुरुआत खादी से कर के आज उसे ली, वूडलेंड, लीवाइस, कॉटन प्लस आदि पर ले आए हैं। सच है आज भले ही भारत में करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्हें खाने को भर पेट भोजन उपलब्ध नहीं है पर फिर भी हम लोग आर्थिक सशक्तिकरण की ओर बहुत तेज़ी से अग्रसर हैं क्यों कि हमारे शेयर बाज़ार का सूचकांक 19,000 का आँकड़ा छूने को है।

2 Comments:

अनिल रघुराज said...

सर्वग्रासी बाज़ार ही अपने फायदे के लिए हमारे आइडल तैयार करने लगा। यह महज संयोग नहीं है कि इंडियन आइडल पूरी तरह अमेरिकन आइडल कार्यक्रम की नकल है, लोगो तक वैसा ही रखा गया है। कौन बनेगा करोड़पति भी एक विदेशी कार्यक्रम का भारतीय संस्करण था। देसी के नाम पर विदेशी सोच का खतरनाक इंजेक्शन कब तक चलेगा, पता नहीं। अच्छे मुद्दे पर अच्छा लिखा है आपने।

Anonymous said...

bhai baat apne bahut hi sahi kaha hai.. lekin ye bhi to hai ki ek nishchit kaalkhand ke paschat hamaare mulya , hamare chintan , hamare aadarshon me ek bada parivartan ho jata hai.. is liye chinta karne ki koi baat nahin hai.. zamana apne raftaar se aage badhega hee.. hum speed pe ankush nahin laga sakte.. bass dekhna yahi hai.. ki stearing kisi surakshit haathon mein ho..
aur ab khadee bhi lee ke pant aur woodland ke jooton se kahan sasta hai....
waise matter achchha hai.. dhnayawaad.

 

© Vikas Parihar | vikas