Friday, May 30, 2008

भड़ास और मोहल्ले के बीच पिसा बेचारा हम्माम

[पूर्व सूचना :- हालांकि मेरे लेख न तो किसी व्यक्ति विशेष से प्रभावित हैं और न ही किसी विचारधारा विशेष से। यदि मेरे लेखों से किसी व्यक्ति विशेष के मन को कोई चोट पहुंचती है तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं]


इस से पिछली वाली पोस्ट पर मैंने चिट्ठेकारी के उद्देश्य को रेखांकित करने की कोशिश की थी परंतु हमारे कुछ सुधीजनों ने उसे भड़ास या यशवंत जी की हिमायती पोस्ट समझ कर उसकी घोर भत्सर्ना की। कुछ लोगों ने अपने नाम से टिप्पणी की तो एक भाई ने बेनाम टिप्पणी डाली। अविनाश भाई का फोन आया उनसे हालांकि पहली बार बात हुई परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि पहली बार बात हो रही है। उनसे काफी लम्बी और गहन चर्चा हुई। तो उस से समझ आया कि मेरी पोस्ट को कुछ गलत दिशा दी गई है या कोई सम्वादहीनता है जिसने मोहल्ले के कुछ साथियों को ऐसी टिप्पणियां करने पर मजबूर कर दिया है।
भैया वैसे मेरी आदत नहीं है किसी तरह की सफाई देने की। और न ही मेरी चाह है किसि तरह की टिप्पणी की। मैं तो बस अपना काम करना जानता हूं और अपने चिट्ठे को विकास से जुड़े मुद्दों को उठाने और उन पर अपने विचारों को व्यक्त करने का माध्यम मानता हूं। और अपने इस आदर्श पर मैं तब से अडिग हूं जब से मैने चिट्ठाकारी शुरू की है। मैं यह नहीं जानता कि अविनाश जी की बात में कितनी सच्चाई है या यशवंत जी कितना झूठ बोल रहे हैं। जहां तक मेरी जानकारी है या मेरी समझ है उसके अनुसार मेरा मानना है कि यदि हम किसी एक व्यक्ति की सहायता करना चाहते हैं तो हम उसकी समस्या को सुलझाने की दिशा मे कार्य कार सकते हैं परंतु यदि हमे समाज की समस्या का समाधान करना है तो हमे एक व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्या को पूरे समाज की समस्या का रूप देना पड़ेगा। और उसे पूरे युग की पीड़ा के रूप मे परिलक्षित करना पड़ेगा। यदि मैं लिखूंगा या यदि मैं आवाज़ उठाऊंगा तो मैं उस व्यवस्था के विरुद्ध उठाऊंगा जिसके कारण एक इंसान एक स्त्री की अस्मिता पर झपट्टा मारने की हिम्मत जुटा लेता है।
अब आते हैं मुद्दे की बात पर तो भाई एक बात ज़रूर कहूंगा कि कुछ लोग सामुदायिक ब्लॉग्स बनाते हैं उस पर भदेसपन की नाम पर गाली गलौच लिखते हैं और यह सफाई देते हैं कि पूरे समाज मे दी जाती हैं भाई और सभी इनसे भली भांति परिचित हैं। सही भी है परा मैं एक बात पूछता हूं कि हर माता-पिता जानते हैं कि सुहाग रात को क्या होता है तो क्या सिर्फ इसी कारण सुहाग रात को सार्वजनिक रूप से मनाया जा सकता है? और मान लिया कि गालीयां देना इतना ही ज़रूरी है तो फिर सभी गालियां सिर्फ स्त्रियों के कुछ अंग विशेष से सम्बंधित क्यों हैं पुरुषों के अंगों से संबंधित गालियों का भी अविष्कार किया जाए और उन्हे प्रयोग में लाया जाए। परंतु ऐसा होता नहीं है। या तो पुरुषों के अंग इस लायक नहीं हैं या फिर सृजनात्मकता का आभाव है। और दूसरी तरफ हम एक बलात्कार की कोशिश के विरुद्ध तो आवाज़ उठाते हैं परंतु दिल्ली मे होने वाले कितने ही पंजीबद्ध बलात्कार प्रकरणों की तरफ और उससे भी ज़्यादा अपंजीबद्ध प्रकरणों की तरफ कभी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। और साथ ही साथ यह कहा जाता है कि यह ना तो नम्बर की लड़ाई है और न ही व्यक्तिगत। हिन्दुस्तान में एन.एच.आर.सी. की रिपोर्ट के अनुसार सन 2006 में 19,384 बलात्कार और 36,617 प्रताड़ना के मामले पंजीबद्ध किए गए। इसमें से 31.1% मामले दिल्ली के हैं। और न जाने ऐसे कितने मामले हैं जिनका पंजीकरण नहीं कराया गया। तो उस समय हमारे तथाकथित बड़े बड़े पत्रकारों की पत्रकारिता और बड़े-बड़े लेखको की लेखनी को जंग लग जाती हैं। “नहीं नहीं हम इन मुद्दों या विकास से जुड़े मुद्दों पर नहीं लिखेंगा नहीं तो हमारी पोस्ट पर टिप्पणियां नहीं मिलेंगी। हमारे ब्लॉग पर हिट्स नहीं आयेंगे।“ हमें तो हमारे ब्लॉग पर हिट्स बढ़ाने हैं। टिप्पणियों की संख्या बढ़ानी है। बस यही चलता रहता है। और अब तो एक और कार्यक्रम शुरू हो गया है अपने सामुदायिक ब्लॉग बनाकर अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर छींटाकशी का एक शो चलाया जाए थोड़ी सी सनसनी पैदा होगी। थोड़ा स तड़का लगेगा। थोड़ी सी पब्लिसिटी होगी। और फिर कुछ दिनों के हंगामे के बाद सब कुछ चला जाएगा ठंडे बस्ते में।

[कहना तो बहुत कुछ है परंतु आज के लिए बस इतना ही। बाकी अगली बार]
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त..................

Thursday, May 29, 2008

मोहल्ले में निकल रही भड़ास और भड़ास बना मोहल्ला

बहुत दिनों बाद अपने एक मित्र के बताने पर भड़ास पर पहुंचा तो देखता हूं कि भड़ास में एक मोहल्ला बन गया है और मोहल्ले में भड़ास निकल रही है। बात आगे कहने से पहले यशवंत जी एवं सभी बंधुओं से क्षमा चाहता हूं। यदि पहली बार पढने में मेरी कही गई बात गलत या बुरी लगे तो अनुरोध है कि इस पोस्ट को दोबारा पढ़ें और शांति से आत्ममंथन करे।
सबसे पहली बात तो यह है कि भड़ास एक सामुदायिक ब्लॉग है जिसका उद्देश्य पूरे देश के पत्रकारों और आम जन को अपने मन की भड़ास और कुंठाओं को को निकालने का एक मंच प्रदान करना है। हम भड़ास पर बात करते हैं उन सभी गलत बातों की जो समाज में या फिर पत्रकारिता जगत में चल रही हैं। तो फिर नम्बर वन या नम्बर टू वाली बात ही नहीं उठती। और अगर हम लोग ही इस होड़ा-होड़ी में लग जायेंगे तो फिर सनसनी को खबर बना कर प्रस्तुत कर रहे और टी.आर.पी. की अन्धी दौड़ में लगे हुए खबरिया चैनलों में क्या फर्क़ रह जाएगा? और अगर हम ऐसा करते हैं तो कहीं न कहीं हम अपने उद्देश्य से तो भटकते ही हैं साथ ही साथ भड़ास ने जिस पुण्यकर्म के लिए जन्म लिया है उसे भी दूषित करते हैं।
एक तरफ तो हम ब्लॉगिंग को भविष्य के एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के रूप में प्रस्तुत करते हैं और दूसरी तरफ ऐसी छींटाकशी करते हैं। और रही बात नम्बर वन की तो चाहे आज खबरिया चैनल कितनी भी टी.आर.पी. कमा लें पर खबर के मामले में दूरदर्शन की बराबरी नहीं कर सकते क्यों कि आज भी दूरदर्शन “अमिताभ बच्चन के पैदल सिद्धिविनायक मन्दिर जाने” या फिर “मल्लिका शेरावत या राखी सावंत की नंगी टांगों” को मुख्य खबर बना कर नहीं दिखाता। वह आज भी अपने मापदंण्डो पर तटस्थ है। इसीलिये उसकी विश्वस्नीयता आज भी बरकरार है।
मैं यह नहीं कहता कि व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता नही होनी चाहिये। वह भी एक समग्र विकास के लिए बहुत ज़रूरी है परंतु यह भी ध्यान रखा जाए कि यह व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता कहीं दुश्मनी में न बदल जाए। और अगर बदले भी तो कम से कम बशीर बद्र साहब की उन लाइनों को तो अवश्य याद रखा जाए जो कहती हैं: दुश्मनी जम के करो पर यह गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।
अभी के लिए बस इतना ही लिख रहा हूं आगे इस मसले पर और भी बहुत कुछ है लिखने को पर वो बाद में लिखूंगा।

 

© Vikas Parihar | vikas