बहुत दिनों बाद अपने एक मित्र के बताने पर भड़ास पर पहुंचा तो देखता हूं कि भड़ास में एक मोहल्ला बन गया है और मोहल्ले में भड़ास निकल रही है। बात आगे कहने से पहले यशवंत जी एवं सभी बंधुओं से क्षमा चाहता हूं। यदि पहली बार पढने में मेरी कही गई बात गलत या बुरी लगे तो अनुरोध है कि इस पोस्ट को दोबारा पढ़ें और शांति से आत्ममंथन करे।
सबसे पहली बात तो यह है कि भड़ास एक सामुदायिक ब्लॉग है जिसका उद्देश्य पूरे देश के पत्रकारों और आम जन को अपने मन की भड़ास और कुंठाओं को को निकालने का एक मंच प्रदान करना है। हम भड़ास पर बात करते हैं उन सभी गलत बातों की जो समाज में या फिर पत्रकारिता जगत में चल रही हैं। तो फिर नम्बर वन या नम्बर टू वाली बात ही नहीं उठती। और अगर हम लोग ही इस होड़ा-होड़ी में लग जायेंगे तो फिर सनसनी को खबर बना कर प्रस्तुत कर रहे और टी.आर.पी. की अन्धी दौड़ में लगे हुए खबरिया चैनलों में क्या फर्क़ रह जाएगा? और अगर हम ऐसा करते हैं तो कहीं न कहीं हम अपने उद्देश्य से तो भटकते ही हैं साथ ही साथ भड़ास ने जिस पुण्यकर्म के लिए जन्म लिया है उसे भी दूषित करते हैं।
एक तरफ तो हम ब्लॉगिंग को भविष्य के एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के रूप में प्रस्तुत करते हैं और दूसरी तरफ ऐसी छींटाकशी करते हैं। और रही बात नम्बर वन की तो चाहे आज खबरिया चैनल कितनी भी टी.आर.पी. कमा लें पर खबर के मामले में दूरदर्शन की बराबरी नहीं कर सकते क्यों कि आज भी दूरदर्शन “अमिताभ बच्चन के पैदल सिद्धिविनायक मन्दिर जाने” या फिर “मल्लिका शेरावत या राखी सावंत की नंगी टांगों” को मुख्य खबर बना कर नहीं दिखाता। वह आज भी अपने मापदंण्डो पर तटस्थ है। इसीलिये उसकी विश्वस्नीयता आज भी बरकरार है।
मैं यह नहीं कहता कि व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता नही होनी चाहिये। वह भी एक समग्र विकास के लिए बहुत ज़रूरी है परंतु यह भी ध्यान रखा जाए कि यह व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता कहीं दुश्मनी में न बदल जाए। और अगर बदले भी तो कम से कम बशीर बद्र साहब की उन लाइनों को तो अवश्य याद रखा जाए जो कहती हैं: दुश्मनी जम के करो पर यह गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।
अभी के लिए बस इतना ही लिख रहा हूं आगे इस मसले पर और भी बहुत कुछ है लिखने को पर वो बाद में लिखूंगा।
Thursday, May 29, 2008
मोहल्ले में निकल रही भड़ास और भड़ास बना मोहल्ला
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3 Comments:
भाई साहब, आप बलात्कार के एक आरोपी का अनुमोदन कर रहे हैं। क्या कुंठाएं सिर्फ स्त्रियों के खिलाफ ही निकलती हैं और दूसरों के चरित्रहनन तक पहुंच जाती हैं? जिस दिन आपकी बहन के साथ यशवंत बलात्कार करेगा, उस दिन भी यही कहेंगे कि अरे वो तो अपनी कुंठा निकाल रहा है - वो ऐसा ही है - सब अपना-अपना काम करो। आपकी सोच कितनी घृणित है, इसी से अंदाज़ा लगता है। मोहल्ले ने अगर एक ऐसी घटना के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी है, तो उसे मोहल्ले में भड़ास निकालना कहते हैं - हद है! न हो तो एक बार फिर पढ़ लीजिए ये लिंक http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html
मुझे शर्म आ रही है कि कभी मैं आपके ब्लाग पर तिपियाता रहा हूं।
आप मेरी आई पी देखकर समज गये होगें कि मैं कौन हूं। मुझे नहीं मालूम था कि आप भी भडासी होंगे।
राहुल गाँधी और प्रियंका बहनजी जी की दैनिक गतिविधियों की अमूल्य जानकारी विस्तार से लोगों को देने के लिए दूरदर्शन पर समाचार दिखाए जाते हैं. कभी कभी प्रियरंजन दास मुंशी (सूचना प्रसारण मंत्री) भी कुछ बड-बड करते दिखते हैं. आप देखते रहिये.
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