Tuesday, September 25, 2007

आस्था और विज्ञान

पेंजिया-प्ररंभिक पृथ्वी

रामायण में सेतु निर्माण का चित्र

नासा द्वारा लिया गया रामसेतु का छायाचित्र



कुछ वर्षों पहले इसकॉन मंदिर की वेबसाइट ने अपने एक लेख में लिखा था कि नासा द्वारा लिये गये कुछ छायाचित्रों में भारत और श्रीलंका को जोडने वाले उस सेतु के भी छायाचित्र हैं जिसका प्रयोग भगवान राम ने त्रेतायुग मे असुर रावण की लंका नगरी तक जाने के लिये किया था। और इस सेतु की संरचना और बनावट यह दर्शाती है कि यह एक मानव निर्मित सेतु है। पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार श्रीलंका मे मानव जीवन की शुरुआत लगभग 1,750,000 वर्षों पूर्व हुई थी और इस सेतु की उम्र भी लगभग इतनी ही बताई जा रही है।
अब अगर ये लेख सच है तो फिर यह रामायण की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिये एक बहुत महत्वपूर्ण सूत्र है। क्योंकि त्रेतायुग, जिसमें रामायण घटित हुई, का काल भी लगभग यही था यानि 1,700,000 वर्ष पहले। परंतु यहां एक बहुत बडी समस्या यह उत्पन्न होती है कि अभी तक जो अवशेष मिले हैं उनसे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी पर वर्तमान मानव होमोसेपिअंस की शुरुआत 150,000 से 180,000 वर्षों पहले ही हुई है। और आदि मानव यानि होमोइरेक्टस अफ्रिका से लगभग 750,000 वर्षों पहले ही बाहर निकले हैं। यदि इन तथ्यों की माने तो 1,700,000 वर्षों पहले तो एक कुल्हाडी भी नहीं थी रामायण मे उपयोग में लाये गये हथियार तो बहुत दूर की बात है। परंतु यहां एक बात और गौर करने वाली है कि यदि यह मान लिया जाये कि रामायण पूर्णतः काल्पनिक है तो क्या उस समय किसी व्यक्ति के लिये इतने उन्नत हथियारों की कल्पना करना संभव था? तो इसके लिये यह कहा जा सकता है कि जब एच.जी.वेल्स टाइम मशीन की कल्पना कर सकते हैं तो वाल्मिकि इन हथियारों की क्यों नहीं।
अब यदि विज्ञान और आस्था के मध्य फंसे इस विषय के प्रभाव की बात करे तो क्या हम अपनी आने वाली पीढी को कहीं गुमराह तो नहीं कर रहे? क्यों कि यदि कोई रामायण या अन्य धर्मग्रंथ की सार्थकता या उसकी प्रमाणिकता से संबंधित सवाल पूछता है तो हम उसे चुप करा देते हैं। और आज कल विद्यार्थियों को विज्ञान और आध्यात्म दोनो विषय एक साथ पढाए जाते हैं। और यदि कोई विद्यार्थी या व्यक्ति यदि विज्ञान की प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है तो उसे निहायत ही मूर्ख कहा जाता है और यदि वह इन ग्रंथों की प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है तो आज भी उसके साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जाता है जैसा कि गेलीलियो के साथ तब किया गया था जब उसने यह घोषित किया था कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर नही लगाता बल्कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। और यदि आज 21वीं सदी में भी यदि हम यही मानसिकता विकसित कर रहे है तो इसमें कोई दो राहें नहीं कि हमारी आने वाली पीढी भी इसी बात पर विश्वास करेगी कि एक गाय की जान पांच दलितों की जान से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

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© Vikas Parihar | vikas