Tuesday, September 25, 2007

रामसेतु हेतु

नासा द्वारा ली गयी रामसेतु की तस्वीर







बहुत दिनो से राम सेतु विवाद पर सुन और पढ रहा हूं। तो मुझे यह लग रहा है कि हिन्दुस्तान की राजनीति को क्या हो गया है जो तिल जैसे मुद्दे को ताड़ जैसा मुद्दा बना दिया। दरअसल रमसेतु पर जो भी विवाद है उस सारे विवाद की जड़ है सेतुसमुद्रम केनाल प्रोजेक्ट। अगर यह प्रोजेक्ट ना होता तो यह विवाद भी उतपन्न न होता। तो अब सवाल यह उठता है कि यह सेतुसमुद्रम केनाल प्रोजेक्ट है क्या और इसके फायदे और नुकसान क्या हैं। बात यह है कि सेतुसमुद्रम केनाल प्रोजेक्ट के माध्यम से सरकार रामसेतु या अडम्स ब्रिज को बीच मे से काट कर बडे-बडे जहाज़ों के लिये रास्ता बनाना चहती है। इससे सीधा-सीधा लगभग 350 नॉटिकल माइल्सय फिर 650 किलो मीटर का रास्ता कम हो जायेगा जिससे व्यवसाय मे बहुत मुनाफा होगा। और भारत को उसके अर्थिक सशक्तिकरण में काफी सहायता करेगा।
परंतु वहीं इस परियोजना के पूर्ण हो जाने के बाद वहां के लगभग 200,00,000 मछुआरों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। इतना ही नहीं बल्कि आगे अगर कभी सुनामी तूफान आया तो उसके प्रभाव को भिइ बढा देगा और इस परियोजना के पूर्ण हो जाने के बाद भारत को उसके थ्योरिअम डिपोज़िट्स भी बहुत कम हो जायेंगे जो कि न्यूक्लिअर रिएक्टर के ईंधन के रूप में काम आ सकते हैं।
तो यदि इस नज़रिये से देखें तो सेतुसमुद्रम केनाल प्रोजेक्ट् से लाभ कम और हानियां ज़्याद हैं। और जो लाभ हैं वह भी देश के पूंजिपतियों के लिये ज़्यादा है और आम भारतवासियों के लिये कम। और रही बात इस प्रोजेक्ट के दूरी वाले एक मात्र लाभ की तो मध्य पूर्व, अफ्रिका, मॉरीशस, एवं यूरोप से आने वाले जहाज़ों को इस परियोजना से केवल 8-10 घंटों का ही लाभ होगा। और वर्तमान कीमत को देखा जाये तो यदि यूरोप या अफ्रीका से आने वाले जहाज़ इस केनाल का उपयोग करेंगे तो वर्तमान दर के हिसाब से उन्हें प्रति यात्रा पर लगभग 4992 डॉलर का घाटा होगा और यह घाटा इसीलिये महत्वपूर्ण है क्यों कि इस रास्ते का उपयोग करने वाले 65% जहाज़ यूरोप और अफ्रीका के ही होंगे। और यदि कीमतों को इतना घटाया गया कि इन जहाज़ों को घाटा न हो तो इस परियोजना की आई.आर.आर.(इंटरनल रिटर्न रेट) 2.6% तक गिर जायेगी। और यह वह स्तर है जिस पर प्रशासन द्वारा जन-उपयोगी अधोसंरचनाओं की परियोजनाएं भी अस्वीकार कर दी जाती हैं।

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© Vikas Parihar | vikas