Tuesday, September 25, 2007

भारत ने पाकिस्तान को पछाड़ा

आज दो खबरों पर एक साथ नज़र पडी पहली तो यह कि भारत ने 20-20 विश्व कप मे पाकिस्तान को हराया और दूसरी यह कि ब्रिटेन के लंदन शहर में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त सामुदायों में भारतीयों की संख्या पाकिस्तानियों से अधिक है और इस सूची में भी भारत ने पाकिस्तान को पछाड़ दिया है। एक साथ दो-दो क्षेत्रों मे पाकिस्तान को पछड़ना किसी भी हिन्दुस्तानी के लिये गर्व की बात होती है चाहे वह क्षेत्र कोई भी क्यों न हो।
यदि फाइनल मैच की बात करें तो जीत के बाद सभी चैनलों ने बाकी सभी समाचारों को छोड़ कर बस मैच और जीत के जश्न के फुटेज दिखाने शुरू कर दीं। और इन फूटेज्स में मुख्य बात जो नज़र आयी वह यह थी कि अधिकतर लोगों को भारत के जीतने की खुशी से अधिक पाकिस्तान के हारने की खुशी थी। जहाँ देखो वहाँ हिन्दुस्तान के समर्थन में कम और पाकिस्तान के विरोध में ज़्यादा नारे लगाए जा रहे थे। मैं भी भारत की जीत पर उतना ही खुश होता हूं जितना कि कोई अन्य भारतवासी परंतु मैं सिर्फ भारत की जीत का ही जश्न मनाता हूं न कि किसी अन्य की हार का। और मैं अपने अन्य भारतीय बन्धुओं से भी यही अपेक्षा रखता हूं कि वे भी सिर्फ भारत की जीत का ही जश्न मनायें। क्योंकि भारत की रीति सदैव से प्रीत ही रही है न कि दुर्भावना या द्वेश। और यही करण है कि आज भी भारत की संस्कृति अक्षुण्ण एवं समस्त संस्कृतियों में अग्रणी है।
और अब अगर दूसरी खबर की बात करें और लंदन पुलिस के आंकडो पर गौर करें तो हम पाते हैं कि ब्रिटेन में आपराधिक गतिविधियों मे लिप्त अप्रवासी सामुदायों मे भारतीय 748 अपराधों, जिनमें 235 हिंसक अपराधों की श्रेणी में आते हैं, के साथ आठवे स्थान पर हैं जबकि पाकिस्तानी 591 अपराधों, जिनमें 177 हिंसक अपराध शामिल हैं, के साथ दसवें स्थान पर हैं। परंतु यहां मैं यह कहना ज़रूरी समझता हुं कि इन आंकडो का अर्थ यह कतई नही है कि सभी भरतीय अपराधिक प्रवृत्ति के होते हैं। और यदि कोई व्यक्ति इन आंकडो को देख कर यह धारणा बना लेता है तो वो सर्वथा अनुचित है। क्योंकि किसी सामुदाय य मुल्क के कुछ लोगों की गतिविधियों य उनके कार्यों का हवाला दे कर उस सामुदाय या देश के प्रति किसी भी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर कोई धारणा बना लेना बिल्कुल गलत है। इस विषय पर लिखा तो बहुत जा सकता है परंतु मैं अपने आप को सिर्फ इतना ही कह कर विराम दूंगा कि बलवाइयों का न तो कोई धर्म होता है और न ही कोई मुल्क। और यह बात किसी और मुल्क के लिये भी उतनी ही सच है जितनी कि हमारे लिये।

2 Comments:

अनिल रघुराज said...

विकास जी, सही बात है। वैसे कितनी विडंबना है कि विभाजन के 60 साल बाद भी हमारे दिलोदिमाग में विभाजन बरकरार है। क्या विभाजन के इस घाव को किसी तरह भरा नहीं जा सकता?

mamta said...

विकास जी आपने ठीक कहा है कि हमे जीतने की ख़ुशी मनानी चाहिऐ।

 

© Vikas Parihar | vikas