Monday, September 24, 2007

स्थायित्व और भारतीय

अभी हाल ही में महेन्द्र सिंह धोनी को भरतीय क्रिकेट टीम का कप्तान चुना गया।और ज़ाहिर सी बात है कि जमशेदपुर से उठे इस खिलाडी के द्वारा प्राप्त की गयी इस उपलब्धि का जश्न न केवल जमशेदपुर में बल्कि पूरे हिन्दुस्तान में मनाया गया। मनाया भी जाना चाहिये क्यों कि महज़ तीन साल में भरतीय क्रिकेट टीम के कप्तान का पद प्राप्त करना कोई हंसी खेल थोडे ही है। और वर्तमान 20-20 विश्व कप के फाइनल में पहुँचने वाले वाक़्ये ने तो इस बात में और चार चाँद लगा दिये। जश्न अपने चरम पर पहुंच गया। और यदि भारत यहाँ कप जीत जाता है तो हमारे देश के करोडों लोग पूरी टीम और खास कर महेन्द्र सिंह धोनी को सिर आँखों पर बिठा लेगी।
परंतु हम हिंदुस्तानियों की यह कमज़ोरी समझ लीजिये या फिर ताकत कि हम हर चीज़ को बहुत जल्दि भुला देते हैं। मैं ऐसा इसी लिये कह रहा हूं क्यों कि यह वही लोग हैं जिन्होने विश्व कप मे पराजय के बाद धोनी के घर पर पथराव किया था और उन्हे ज़ेड सुरक्षा लेने के लिये मजबूर कर दिया था। हम लोग बहुत जल्दि किसी को अपने सिर पर चढा भी लेते हैं और उतनी हि जल्दि उसे उतार भी देते हैं। सचिन, गंगुली, कपिल, अज़हर, जडेजा, कपिल जैसे न जाने कितने ही उदाहरण हमे मिल जायेंगे जो हमारी नज़रों में चढे, उतरे और फिर चढे। परंतु स्थायित्व किसी को नहीं मिल पाया।
कहा जाता है ना कि जहां पानी के बहाव में स्थायित्व आ जाता है वहां वह सडने लगता है। शायद इसी लिये हम किसी को भी अपनी नज़रों में स्थायित्व नहीं देते।

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© Vikas Parihar | vikas