Friday, September 28, 2007

फ़तवे की राजनीति

हाल ही में कुछ दिनों पहले बरेली के एक मौलवी ने सलमान खान के खिलाफ सिर्फ इसीलिये फ़तवा ज़ारी कर दिया था क्यों कि उन्होने गणेश पूजा में शिरकत की थी। हालांकि इस फ़तवे को इतनी तवज़्ज़ो नहीं दी गयी परंतु यह फ़तवा आज-कल धड़ाधड़ ज़ारी किये जा रहे फ़तवो और उन पर सवार राजनीति पर एक सवालिया निशान लगा देते हैं। चाहे वह फ़तवा तसलीमा नसरीन पर हो या सलमान खान पर।
जहां तक तसलीमा नसरीन के ऊपर ज़ारी किये गये फ़तवे की बात है तो तो उन पर फ़तवा उनकी किताब ‘लज्जा’ के लिये ज़ारी किया गया था। और जितना मुझे याद है इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं लिखा था। उसमें सिर्फ और सिर्फ बांग्लादेश में हुए दंगों के दौरान की स्थिति का ही वर्णन किया गया था। और अब यह फतवा जो सलमान खान पर ज़ारी किया गया है उसने तो अपनी सारी हदें ही तोड़ दी हैं। इस फ़तवे ने न केवल इस्लाम की छबि को ही धूमिल किया है बल्कि इसने फ़तवे की महत्ता को भी कम कर दिया है। यदि सलमान पर लगाए गए इस फतवे के माध्यम से बात करे तो शायद वे मौलवी जिन्होने यह फ़तवा ज़ारी किया है या तो वे असल मे मौलवी बनने लायक ही नहीं हैं या फिर उन्हें इसलाम की सही समझ नहीं है। दरअसल वे एक सच्चे मुसलमान कहलाने लायक ही नहीं हैं। क्यों कि इस्लाम में मुसलमान का अर्थ होता है जिसका ईमान मुसल्लम(पवित्र) हो और जिसका ईमन पवित्र होता है वह सभी धर्मों के सह-अस्तित्व पर विश्वास रखता है। यहा तक कि क़ुरान मे भी सभी धर्मों के सह-अस्तित्व की बात कही गई है। उसमे कहीं भी किसी दूसरे धर्म को नीचा समझने या दिखाने पर ज़ोर नहीं दिया गया है और जो तथाकथित इस्लामी धर्मगुरू दूसरे धर्म को नीचा दिखाने उनके अस्तित्व को नकारने की बात करते हैं वे इस्लाम और उसकी शिक्षाओं दोनो का गलत संदेश दुनिया को देते हैं। और दुनिया भर में इसलाम और मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं।

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© Vikas Parihar | vikas