मान गए मियाँ मुशर्रफ आपको। आप से बेहतर राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, और रणनीतिज्ञ पाकिस्तान में न कभि हुआ है और शायद न हि कभी हो पायेगा। पाकिस्तान की फौज में जहां हमेशा पंजाबी अफसरों का बोलबाला रहा वहां आप धड़ल्ले से अपनी पदोन्नति लेते रहे। फिर जिन नवज़ शरीफ ने आपको सबसे सुरक्षित समझ कर सेना अध्यक्ष बनाया आपने उन्ही शरीफ की कूटनीति को फेल कर दिया और उन्हें देश से ही निकाल बाहर किया और किया भी कुछ इस तरह कि वो आज तक पाकिस्तान के अंदर नही घुस पा रहे।
और इतना ही नहीं अब आप दूसरी बार राष्ट्र्पति का चुनाव भी लड़ रहे हैं। भले ही कितना भी विरोध हो आपको क्य फर्क़ पड़ना है। दिखावे के लिये आपने यह घोषणा भी कर दी कि यदि आप राष्ट्रपति बन गए तो सेना अध्यक्ष् का पद छोड़ देंगे। अब आपने सारे मुख्य पदों पर अपने हांथ की कठपुतलियों की नियुक्ति तो कर ही दी है तो अब भले ही आप सेना अध्यक्ष रहें या आपका कोई गुर्गा क्या फर्क़ पड़ना है। पकिस्तान के वकीलों ने आपके खिलाफ अपनी कमर कस ली है। पर उन बेचारे नासमझों को कौन समझाए कि जहां राजनीति, रणनीति और कूट्नीति का इतना उत्कृष्ट मिश्रण हो वहां प्रदर्शन, धरने, जनादेश आदि सब धरे के धरे रह जाते हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल के प्रवक्त मुनीर मलिक कह रहे हैं कि नौ न्यायाधिशों की खंड्पीठ, जिसने मुशर्रफ को सेनाध्यक्ष रहते राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की इजाज़त दी है उसके तीन न्यायाधीश जिन्होंने मुशर्रफ के विरोध में मत दिया था उन्हें इतिहास में गिना जायेगा और जिन छः ने मुशर्रफ के पक्ष मे मत दिया उनका फैसला इतिहास करेगा। चलो अब मुनीर साहब ने उन तीन बेचारे न्यायाधीशों को इतिहास में गिन लिया यानि वह भी यह तो जान ही गए है कि अब वे लोग बस इतिहास ही बन कर रह जायेंगे और बाकी के छः अभी आगे आकर कौन-कौन से बड़े ओहदे सम्हालेंगे यह आने वाला वक़्त बताएगा। मगर एक बात तो है मियाँ मुशर्रफ कि आप तो बस आप ही हैं।
Saturday, September 29, 2007
मान गए मियाँ मुशर्रफ
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