Saturday, September 29, 2007

अरबपति और भूखे

मेरी एक रचना ‘प्रदर्शन का दर्शन’ पर समीर भाई ने एक बहुत अच्छी टिप्पणी और उसी टिप्पणी ने मुझे प्रेरित किया यह लेख लिखने को।
भाई अभी हाल ही में बॉलीवुड, हॉलीवुड, नॉलीवुड और न जाने कितने ही वुडों के लोग न्यूयॉर्क में हो रहे संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय की इमारत के सामने भूख की समस्या को ले कर प्रदर्शन कर रहे थे। पर मुझे यह समझ नहीं आता कि जो लोग खुद हमेशा पांच सितारा होटलों में खाना खाते हों भला वे क्या जाने कि भूख क्या होती है? बकौल समीर भाई उनका नाम असरकारक है इसीलिये कुछ भला ही होगा। समीर भाई मैं भी आपकी बात से सहमत हूं। मैं इस प्रदर्शन के विरुद्ध भी नहीं हूं। परंतु सिर्फ तभी जब यह सब सिर्फ भला करने की मंशा से किया जा रहा हो। यदि आंकड़ों को याद किया जाए तो दुनिया में इस समय 946 घोषित अरबपति हैं और लगभग 80 करोड़ 54 लाख लोग ऐसे हैं जो जिन्हे रोज़ाना खाना नसीब नहीं होता। यदि बाकी अघोषित अरबपतियों और अन्य कई पतियों को छोड़ दिया जाए तो भी ये 946 अरबपति ही इन सभी भूखों के दोनो वक़्त के भोजन की व्यस्था कर सकते हैं। वो भी अपनी सेहत पर बिना कोई असर पड़े। परंतु समस्या वहीं खड़ी हो जाती है कि ऐसे प्रदर्शनों के माध्यम से इनकी मंशा ये नही होती कि भूख हटे। और हां यदि दुनिया में जितना भी काला धन है उसे ही निकाल कर इन लोगों को बांट दिया जाये तो ये सभी भूखे लखपति बन जायेंगे। वैसे एक गीत मैने बहुत पहले बचपन मे सुना था उसकी कुछ पंक्तियां यहां दे रहा हूं :
लहू का रंग एक है अमीर क्या गरीब क्या।
बने हैं एक खाक से तो दूर क्या करीब क्या।
वो अमीर इसलिये कि ये गरीब हो गए।
एक बादशाह हुआ तो सौ फकीर हो गए।

2 Comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

विकास परिहार जी,
आपने मेरी कविता देखी और मेरे पापा जी की कविता के कुछ अँश पाये ऐसा लिखा
तो मुझे सँतोष हुआ कि चलो,
सही राह पर चल रही हूँ -
उन्हीँ की एक कविता मेँ,
ये भी लिखा है कि,
" इस दुनिया मेँ दो दुनिया हैँ,
जिनके नाम अमीर गरीब,
पर सोने के नगर बने हैँ,
मिट्टी का ही सीना चीर "
आपके आलेख से मेल खाते विचार हैँ , है ना ?
स - स्नेह,
-- लावण्या

Udan Tashtari said...

चलो, यह भी बढ़िया है. एक ही वस्तु/बात के कई आयाम होते हैं और हर व्यक्ति उसे अपने अपने तरीके से देखने/समझने के लिये स्वतंत्र है. एक मत होना या न होना, दीगर बात है.मुख्य मुद्दा यह है कि व्यक्ति समस्याओं पर विचार करे और कुछ समाधान सोचे, यह साधुवादी कृत्य है. तुम अपनी कलम के माध्यम से ऐसा कर रहे हो, यह बहुत खुशी की बात है. वरना प्रेम, चाँद, नदी, इश्क पर तो सभी लिख रहे हैं. :)जारी रखो ऐसे प्रयत्न.

 

© Vikas Parihar | vikas