Sunday, September 30, 2007

टिप्पणियों का मनोविज्ञान

आज कल चिट्ठाजगत में टिप्पणियों पर बड़ी चर्चा हो रही है। कुछ लोगो का मनना है कि टिप्पणियां ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं होतीं तो वहीं कुछ लोग कहते हैं कि टिप्पणियों की अपनी एक अहम भूमिका होती है। दरअसल टिप्पणियां एक पाठक का हस्ताक्षर होती हैं और लेखक के लिए प्रेरक का काम करती हैं। फिर चाहे वह “लिखते रहें”, “अच्छा लिखा”, “बहुत खराब” या “दोबारा लिख कर पाठकों को मनसिक प्रताड़ना न दें” जैसी ही क्यों न हों। क्यों कि एक टिप्पणी यह भी बताती है कि एक पाठक आपकी रचना को पूरा य आंशिक रूप से पढ़ कर गया है मात्र आपके चिट्ठापृष्ठ का भ्रमण कर के नहीं। और यह बात कोई स्टेट्स काउंटर नहीं बता सकता। यदि टिप्पणी सकारात्मक होती है तो वह लेखक को और लिखने को प्रेरित करती है और यदि वह नकारात्मक होती है तो वह उसे अपने लेखन को और बेहतर बनाने में सहायक होती है। और इन टिप्पणियों की महत्ता तब और बढ जाती है जब यह किसी नए चिट्ठाकार की रचनाओं पर की जाती हैं क्यों कि एक पुराना रचनाकार तो अपनी रचनाओं के बारे मे बहुत अच्छे से जानता है परंतु एक नए रचनाकार को उसकी रचनाओं के बारे में बताना और उसे प्रोत्साहित करना पुराने और स्थापित रचनाकारों का धर्म बन जाता है। परंतु यह तभी संभव है जब दो रचनाकार एक-दूसरे को प्रतिद्वंदी न मान कर पूरक माने क्योकि इसी तरह हम सभी अपने लक्ष्य और प्रारब्ध को अर्थात हिन्दी की सेवा मे अपना योगदान दे पायेंगे। और हम सभी का एकमात्र ध्येय भी तो यही है। है ना??
स्वभाषस्य सुखाय। स्वभाषस्य हिताय।

3 Comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मेरे ब्लोग को आपके निजी पृष्ठ पर स्थान देने का बहुत बहुत आभार !
टिप्पणी के बारे मेँ भी आपने सही लिखा है.
समीर भाई, शायद हिन्दी ब्लोग जगत के सबसे ज्यादा उत्साह बढानेवाले टिप्पणीकार हैँ
और कोई न आये पर वे अवश्य आते हैँ और उत्साह बढाते हैँ -- ये बहोत बडी बात है -
अन्यथा, कई लोग तो चुप रहना ही पसँद करते हैँ.
हाँ, हरेक ब्लोग पर टिपणी देना भी असँभव है.
जो भी हो सके, करते रहना चाहीये.
स्नेह सहित,
-- लावण्या

Shastri JC Philip said...

बहुत अच्छा ! इस लेख से इतना स्पष्ट है कि इस हमाम मे सही तरीके से सोचने वाले काफी है, अत: मुझे इस बात की फिकर नहीं है कि वे आवृत्त हैं या अनावृत !!!!



-- शास्त्री जे सी फिलिप



प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.

आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??

अनुनाद सिंह said...

सही विचारा है आपने। टिप्पणियों के बिना चिट्ठाकारी वैसे ही है जैसे आँख बन्द करके गाड़ी चलाना!

 

© Vikas Parihar | vikas