Monday, November 19, 2007

पत्रकार या बेकार

किसी ने कहा है कि :-
खींचो न तीरो कमान न तलवार निकालो।
जब तोप मुकाबिल हो तब अखबार निकालो।

अखबार की ताकत को बयाँ करने वाला यह जुमला शायद आज बेकार हो गया है या फिर शायद बदलते समय के साथ इस शेर और अखबारो की शक्ति क्षीण पड़ गई है। एक समय अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले एवं स्वतंत्र अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम माने जाने वाले इन अखबारों की स्थिति आज ऐसी हो गई है य कर दी गई है कि इन्हे भी अपनी लेखनी और कलम की शक्ति का प्रयोग करने की जगह ज्ञापन सौंपने और विरोधात्मक रैली निकालने जैसे दूसरे दर्जे के साधन अपनाने पड़ रहे हैं। हाल ही में समाचार पत्रों को नए संस्कार देने वाली जबलपुर नगर मे एक ऐसी घटना घटी जो यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या हमारे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इतना कमज़ोर हो गया है कि हवा का एक कम्ज़ोर झौका उसे आरम से हिला दे? जिस देश में पत्रकारों के लिए यह कहा जाता है कि:-
शक्ल से देखने में यह न गोरे हैं न काले हैं।
न इनके पास पिस्टल हैं न इनके पास भाले हैं।
तबीयत से हैं यह बेफिक्र फाकामस्त जीवन में,
कलम के और कागज़ के धनी अखबार वाले हैं।

उसी देश में पत्रकारों की कलम इतनी भोथरी हो गई है कि उन्हें ज्ञापन सौंपने और विरोधात्मक रैली निकालने जैसे दोयम दर्जे के हथकण्डे अपनाने पड़ रहे हैं। यह बात जितनी हास्यास्पद है उतनी शर्मनाक भी। स्वयं इस क्षेत्र से जुड़े होने के कारण मुझे भी इस बात का क्षोभ होता है कि दूसरों के अधिकारों के हनन के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले माध्यम को आज अपने अधिकारों की रक्षा करना मुश्किल पड़ रहा है। और आज यह बात कहने में थोड़ा दुख तो होता है परंतु कोई हिचक नहीं होती कि सर्वप्रथम मिशन के रूप मे प्रारंभ होने वाली यह विधा धीरे-धीरे प्रोफेशन में बदली उसके बाद सेंसेशन मे तब्दील हुई। यहाँ तक तो ठीक था परंतु पर आत्मा में कहीं न कहीं एक गहरी चोट लगती है कि अब वह धीरे-धीरे कमीशन में बदल रही हैं। कभी कभी यह लगता है कि यह विधा कहीं अपनी चिता अपने ही हांथों से तो तैयार नहीं कर रही? परंतु यहं भी उम्मीद की एक किरण मुझे इसमे भी दिखाई देती है कि हो सकता है कि अपनी हाथों से तैयार की गई चिता मैं नष्ट होने के बाद यह विधा एक बार पुनः जन्म लेगी स्वयं की अस्थियों से फीनिक्स पक्षी की तरह।

2 Comments:

Shastri JC Philip said...

सटीक विश्लेषण. सशक्त वाक्य !!

बाल भवन जबलपुर said...

"कल के बाद से ताज़ातरीन काम ये हुआ की भडासी बन गया हूँ .... मज़ा आ गया आपसे मिलके
और पोस्ट पढ़के कुछ अधिक "

 

© Vikas Parihar | vikas